क्रिप्टो मार्केट में रिस्क मैनेजमेंट

अगर आप ट्रैडिंग या निवेश करते हैं तो आपको ट्रैडिंग टर्मिनल पर उपलब्ध ट्रैड ऑर्डर के सभी प्रकारों के बारे में जरूर पता होना चाहिए। ये ऑर्डर के प्रकार आपके निवेश से समबंधित जोखिमों को कम करने में और जोखिम को मैनेज करने में काफी रामबाण साबित होते हैं। कभी - कभी ये ऑर्डर के विभिन्न प्रकार आपको  बड़े - बड़े नुक्सानों  से बचा लेते हैं। तो आज इस लेख में हम इन ऑर्डर के प्रकोरों के बारे में चर्चा करेंगे । 


अगर आप लेख नहीं पढ़ना चाहते तो हमनें विडिओ द्वारा भी इस विषय को दर्शाया है:




मार्केट ऑर्डर (Market Order)

मार्केट ऑर्डर वह ऑर्डर होतें हैं जिन तत्कालीन भाव पर मार्केट मैं खरीद बिक्री हो रही होती है उसी पर अपना ऑर्डर लगा देना। मतलब बेचने वाला या खरीदने वाला जो रेट मांग रहा है उसी पर सौदा कर लेना। 

Order-Book  मोडेल के हिसाब से इसे स्ट्राइक रेट (Strike Price) कहते हैं । 

लिमिट ऑर्डर (LIMIT ORDER)

इस प्रकार के ऑर्डर किसी एक निश्चित रेट पर खरीददारी करने या बेचने के लिए लगाए जाते है। 


लिमिट बाइ ऑर्डर (LIMIT  BUY ORDER):

   

    LIMIT BUY ORDER तब लगता है जब आपको कोई ऑर्डर मार्केट में चल रहे रेट से नीचे खरीदना होता है। जैसे कि  अगर कोई चीज़ मार्केट में 100 रुपये की मिल रही है मगर आपको लगता है कि कुछ देर बाद यही चीज़ आपको 90 रुपये में भी मिल सकती है तो आप वहाँ पर 90 रुपये का एक लिमिट ऑर्डर लगा देते है। 90 रुपये का रेट आते ही जितना भी सामान आप 90 रुपये पर खरीदना चाहते है अगर उस रेट पर उतना सामान कोई देने वाला होगा तो आपका ऑर्डर पूरा कर दिया जाता है।


ऑर्डर बुक मोडल (ORDER-BOOK MODEL) के हिसाब से लिमिट बाइ ऑर्डर तत्काल में चल रहे मार्केट रेट या उससे नीचे की खरीद पर लगाए जातें हैं । अगर आप तत्कालीन चल रहे रेट से ऊपर का रेट लगाते है तो आपको आपका सामान चल रहे रेट पर ही मिलना शुरू हो जाएगा, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपने चल रहे मार्केट रेट से कितने ऊपर का रेट लगाया हुआ था। 


शर्त:  LIMIT BUY ORDER < = CURRENT MARKET RATE


लिमिट सेल ऑर्डर (LIMIT SELL ORDER):

    लिमिट सेल ऑर्डर भी लिमिट बाइ ऑर्डर की तरह ही काम करता है मगर यह तब काम में लाया जाता है जब आपको आपका सामान मार्केट में चल रहे रेट से ज्यादा रेट पर बेचना होता है।


ऑर्डर बुक मोडेल के हिसाब से लिमिट सेल ऑर्डर भी चल रहे मार्केट रेट या उससे ऊपर के रेट पर लगाया जाता है। 


शर्त : LIMIT SELL ORDER > = CURRENT MARKET RATE


स्टॉप लिमिट ऑर्डर (STOP LIMIT ORDER):

स्टॉप लिमिट बाइ-ऑर्डर  (STOP LIMIT  BUY-ORDER):

यह एक खास तरह का ऑर्डर होता है जो कहता है कि अगर पहले वाली शर्त पूरी हुई  तो ही काम किया जाएगा। इस तरह के ऑर्डर का उपयोग खास कर प्रोफेशनल यानि माँझे हुए ट्रैडर या निवेशक करते हैं। कभी - कभी ट्रैडिंग चार्ट का TECHNICAL ANALYSIS करते हुए कुछ महत्वपूर्ण लेवल निकाल कर सामने आ  जाते हैं जिन्हे पर करना उस स्टॉक या क्रिप्टो के लिए काफी जरूरी होता है, इन लेवल को मार्केट की भाषा में स्पोर्ट और रसिस्टेंस (Support & Resistance) कहा जाता है। इन support और Resistance को पार कर पाने के बाद ही उनमें ऊपर या नीचे की रैली संभव हो पाती है।इसीलिए प्रोफेशनल ट्रैडर इन लेवल के टूटने का इंतज़ार करते है, जैसे ही यह लेवल टूटता है उसके अनुसार वो अपना ऑर्डर लगा देते हैं। 


क्योंकि यह ऑर्डर चल रहे मार्केट रेट से ऊपर के होते है इसलिए इन्हें लिमिट बाइ ऑर्डर की सहायता से लगा पाना संभव नहीं है। लिमिट बाइ ऑर्डर मार्केट रेट या उससे नीचे के रेट पर लगता है मगर हमें खरीदने का रेट मार्केट  से ऊपर लगाना होता है। अगर हम ऐसा लिमिट बाइ ऑर्डर के साथ करेंगे तो ऑर्डर मार्केट रेट पर जो भी भाव चल रहा होगा उस पर ही पूरा कर दिया जाएगा। इसलिए स्टॉप लिमिट ऑर्डर ही ऐसी स्थिति में सही समाधान होता है। 


शर्त : जब पहले वाली शर्त पूरी होगी तभी दूसरा काम होगा। 


स्टॉप लिमिट सेल-ऑर्डर (STOP LIMIT SELL-ORDER):

STOP LIMIT SELL-ORDER भी STOP LIMIT BUY-ORDER की तरह लगाए जाते हैं  मगर इसमें नजरिया बेचने (Short-Selling), प्रॉफ़िट को बुक करने से होता है या अपने हो चुके प्रॉफ़िट को लॉक करने से होता है ।

शर्त : जब पहली शर्त पूरी होगी तभी दूसरा काम होगा।


संक्षिप्त में

बात ऐसी है कि  लिमिट बाइ ऑर्डर काम आता है तब जब मार्केट रेट से नीचे के रेट पर खरीदना हो और लिमिट सेल ऑर्डर काम आता है तब जब मार्केट रेट से ऊपर के रेट पर बेचना हो वो भी जब रेट बताए गए भाव तक आ जाए ।

मगर स्टॉप लिमिट ऑर्डर कुछ शर्तों के पूरा होने पर ही लगता है उसे आप कहीं भी लगा सकते है। चाहे आप उसे चल रहे मार्केट रेट से ऊपर लगाएँ या नीचे लगाए जब तक उसकी पहली वाली शर्त पूरी नहीं होगी आपका काम जो की हमेशा दूसरे नंबर पर रहता है उसको पूरा ही नहीं किया जाएगा। इसमें पहले वाली कन्डिशन को पूरा करना जरूरी है। प्रॉफ़िट लॉक करने या रिस्क मैनेज करके नुकसान को कम से कम रखने में इसका उपयोग किया जाता है। अगर अभी भो कोई शंका रह गई हो तो कृपया कर विडिओ देख लें और अपने सुझाव दें ।